Today Hukamnama
सुख सागरु सुरतर चिंतामनि कामधेनु बसि जा के ॥ चारि पदारथ असट दसा सिधि नव निधि कर तल ता के ॥१॥
हरि हरि हरि न जपहि रसना ॥ अवर सभ तिआगि बचन रचना ॥१॥ रहाउ ॥
नाना खिआन पुरान बेद बिधि चउतीस अखर मांही ॥ बिआस बिचारि कहिओ परमारथु राम नाम सरि नाही ॥२॥
सहज समाधि उपाधि रहत फुनि बडै भागि लिव लागी ॥ कहि रविदास प्रगासु रिदै धरि जनम मरन भै भागी ॥३॥४॥(अर्थ)
(अंग 658 – गुरु ग्रंथ साहिब जी)
(भक्त रविदास जी / राग सोरठि / -)
परमात्मा सुखों का सागर है, जिसके वश में स्वर्ग के कल्पवृक्ष, चिंतामणि एवं कामधेनु है। चार पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष, अठारह सिद्धियाँ एवं नौ निधियाँ उसके हाथ की हथेली पर हैं॥ १ ॥
रसना हरि-हरि नाम का जाप क्यों नहीं करती ,” अन्य समस्त वाद-विवाद छोड़ कर वाणी में लीन हो जा ॥ १॥ रहाउ ।
पुराणों के भांति-भांति के प्रसंग, वेदों में बताई हुई कर्मकाण्ड की विधियाँ यह सभी चौंतीस अक्षरों में ही लिखी हुई हैं भाव यह अनुभवी ज्ञान नहीं है। व्यास ऋषि ने सोच विचार कर यह परमार्थ बताया है कि राम-नाम के तुल्य अन्य कुछ भी नहीं है॥ २ ॥
दु:ख-क्लेशों से रहित सहज अवस्था वाली मेरी समाधि लगी रहती है और फिर साथ ही सौभाग्य से प्रभु में सुरति भी लगी रहती है। रविदास जी का कथन है कि मेरे हृदय में सत्य की ज्योति का प्रकाश हो जाने से मेरा जन्म-मरण का भय भाग गया है|॥३॥४॥
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