Today Hukamnama
बिलावलु महला ५ ॥
संत सरणि संत टहल करी ॥ धंधु बंधु अरु सगल जंजारो अवर काज ते छूटि परी ॥१॥ रहाउ ॥
सूख सहज अरु घनो अनंदा गुर ते पाइओ* नामु हरी ॥ ऐसो हरि रसु बरनि न साकउ गुरि पूरै मेरी उलटि धरी ॥१॥
पेखिओ मोहनु सभ कै संगे ऊन न काहू सगल भरी ॥ पूरन पूरि रहिओ किरपा निधि कहु नानक मेरी पूरी परी ॥२॥७॥९३॥(अर्थ)
बिलावलु महला ५ ॥
मैंने संतों की शरण में आकर उनकी सेवा की है। जिसके फलस्वरूप जगत् के धंधों, बंधनों, सारे जंजालों एवं अन्य कार्यों से मुक्त हो गया हूँ॥ १॥ रहाउ॥
मैंने गुरु से हरि का नाम प्राप्त कर लिया है, जिससे मुझे सहज सुख एवं बड़ा आनंद मिला है। हरि-रस इतना भीठा है कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। पूर्ण गुरु ने मेरी परन्मुखी वृति को अन्तर्मुखी कर दिया है॥१॥
उस मोहन को सब जीवों के साथ बसता देखा हैं, कोई भी स्थान उससे रिक्त नहीं तथा सारी सृष्टि ही उससे भरपूर है। हे नानक ! वह कृपानिधि सर्वव्यापक है और मेरी कामना पूरी हो गई है॥ २ ॥७ ॥ ६३॥
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