दो लकोड़ की करवाई गयी एक दूसरे के साथ शादी

दो लकोड़ की करवाई गयी एक दूसरे के साथ शादी

आधी रात पूरे गांव में घूमकर पहले दूल्हा ढूंढा गया। इसके बाद दुल्हन के लिए भी लड़के की ही तलाश की गई। तलाश पूरी होने के बाद दोनों लड़कों को सजा-धजाकर शादी के मंडप में ले जाया गया और पूरे विधि-विधान से दोनों की शादी करा दी गई। इसमें फेरे भी हुए और इसके बाद बैलगाड़ी में बैठाकर पूरे गांव में बिनौला भी निकाला गया। बांसवाड़ा के बड़ोदिया गांव में यह अनोखा आयोजन किया गया।

बुधवार देर रात बड़ोदिया गांव के मुखिया नाथजी गोयल और संत विवेकानंद महाराज के नेतृत्व में दूल्हे-दुल्हन की तलाश की गई। पहले एक घर से दूल्हा उठाया गया। इसके बाद दुल्हन के लिए भी एक बच्चे को उसके घर से लिया गया। दोनों को जयकारे लगाते हुए, ढोल-नगाड़ों की धुन पर लक्ष्मीनारायण मंदिर लाया गया।

दोनों लड़कों जिनकी उम्र 10 से 13 साल के बीच है, तिलक लगाकर विधि विधान से दूल्हा और दुल्हन की तरह तैयार किया गया। दूल्हे को साफा और शेरवानी पहनाई गई। दुल्हन को ओढ़नी ओढ़ाकर तैयार किया। इसके बाद उन्हें मंदिर के चौक में बने मंडप में ले जाया गया और हिंदू रीति रिवाज से शादी कराई गई। दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई और अग्नि के फेरे लेकर विवाह की रस्में निभाईं।

 

इसके बाद दोनों को बैलगाड़ी में बैठाकर पूरे गांव में बिनौला निकाला गया। इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए और नाचते गाते गैर डांस करते हुए चले।

सवाल यह है कि दो बच्चे जिनकी उम्र 10 से 13-14 साल के बीच है, दोनों लड़के हैं, उनकी शादी कस्बे के बड़े बुजुर्ग आखिर क्यों कराते हैं?

सवाल को लेकर गांव में रहने वाले शिक्षक विनोद पानेरी बताते हैं- बड़ोदिया गांव को बाबा (संत) का गांव कहा जाता है। कहा जाता है कि यह कस्बे के लोग दो-तीन बार विस्थापित हुए। सबसे पहले इसकी बसावट जागेश्वर महादेव मंदिर के आसपास थी। दूसरी बार यह सुनवासिया रोड की तरफ बसा।

तीसरी बार वर्तमान में जो बड़ोदिया गांव नजर आता है, यह बसा। यहां सबसे पहले पटेल समाज के खेर वर्ग के लोग आए थे, उन्होंने पहली बार बड़ोदिया बसाया था। लेकिन न तो उनकी समृद्धि हो सकी और न वंश वृद्धि हुई। संतान किसी न किसी कारण जी नहीं पाती थी।