श्री दरबार साहिब अमृतसर से आज का हुकमनामा

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Today Hukamnama

तिलंग घरु २ महला ५ ॥
तुधु बिनु दूजा नाही कोइ ॥ तू करतारु करहि सो होइ ॥ तेरा जोरु तेरी मनि टेक ॥ सदा सदा जपि नानक एक ॥१॥
सभ ऊपरि पारब्रहमु दातारु ॥ तेरी टेक तेरा* आधारु ॥ रहाउ ॥
है तूहै तू होवनहार ॥ अगम अगाधि ऊच आपार ॥ जो तुधु सेवहि तिन भउ दुखु नाहि ॥ गुर परसादि नानक गुण गाहि ॥२॥
जो दीसै सो तेरा रूपु ॥ गुण निधान गोविंद अनूप ॥ सिमरि सिमरि सिमरि जन सोइ ॥ नानक करमि परापति होइ ॥३॥
जिनि जपिआ तिस कउ बलिहार ॥ तिस कै संगि तरै संसार ॥ कहु नानक प्रभ लोचा पूरि ॥ संत जना की बाछउ धूरि ॥४॥२॥(अर्थ)


तिलंग घरु २ महला ५ ॥
जगत् में तेरे बिना दूसरा कोई नहीं है। हे करतार ! जो तू करता है, वही होता है। मुझ में तेरा ही जोर है और तेरी ही मन में टेक है। हे नानक ! सदा-सर्वदा केवल परमात्मा का ही जाप करते रहो॥ १॥
हे परब्रह्म ! तू महान् है, सबको देने वाला है और मुझे तेरी ही टेक है और तेरा ही आसरा है। रहाउ ॥
तू वर्तमान काल में भी है और भविष्य काल में भी तू ही होने वाला है। तू अगम्य, असीम, सर्वोच्च एवं अपार है। जो व्यक्ति तुझे स्मरण करते रहते हैं, उन्हें कोई भय एवं दुख नहीं लगता। हे प्रभु ! गुरु की कृपा से नानक तेरे ही गुण गाता है॥ २॥
जो कुछ भी दिखाई देता है, वह तेरा ही रूप है। हे गोविंद ! तू गुणों का भण्डार है एवं बड़ा अनूप है। भक्तजन तुझे स्मरण कर-करके तुझ जैसे ही हो जाते हैं। हे नानक ! परमात्मा भाग्य से ही प्राप्त होता है॥ ३॥
जिसने परमात्मा का नाम जपा है, मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ। उसकी संगति करके संसार भी भवसागर से तर जाता है। नानक का कथन है केि हे प्रभु ! मेरी अभिलाषा पूरी करो; मैं तेरे संतजनों की चरण-धूलि ही चाहता हूँ॥ ४॥ २॥

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